( तर्ज - नागनी जुल्फोंपे दिल ० )
क्या खुदाई खुदीसे नियार है ? ।
मैं तो समझा कि ,
एकीका तार है ॥ टेक ॥
पोथी पढ़नेसे पाता नही है पता ।
घूमो तीरथ या मंदर ,
वहाँ ला - पता ।
वह तो धुनियाके
धुनमें निसार है ॥ १ ॥
चाहे बनमें घुमो तो
न पावे वहाँ ।
खुदमें देखो तो
दिखता जहाँके तहाँ ।
सारी उसकीहि
मूरत तैयार है ॥ २ ॥
है जरासा समझना
वह सौखो भला ।
संत - संगतमें पाओ
उसीकी कला ।
कहता तुकड्या ‘ मैं ’
खोजो तुम्हार है ॥३ ॥
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